बुधवार, 30 दिसंबर 2015

स्वस्थशरीर | अौषधीय गुण | पपीता


पपीता का पौधा  प्रायतः  सबकी  घर में  देखने  को  मिलता  है।  पपीता  की उपज  साल में दो बार  होती है।  विटामिन ए , बी , सी , डी  से  युक्त  एक अच्छा  एंटीऑक्सीडेंट  होने के कारण  यह   अनेक  रोगों  से  बचाता  है।  पपीता  त्वचा  तथा बालों के लिए भी  बड़ा उपयोगी  होता है।  पेप्सिन नामक एंजाइम  भोजन के पचाने  के  कार्य  में  प्रभावी  होता है।  अपच , प्लेग , कब्ज , यकृत  अादि  रोगों में  अधिक  लाभकारी  होता  है।  पपीता  के पत्तों  का  रस  कैंसररोधी  होता है।  डेंगू  इत्यादि रोगों में  प्लेटलेट्स  घटने  पर  पपीता के पत्तों का रस  देने से  शीघ्र  प्लेटलेट्स  चमत्कारी  ढंग से  बढ़ने  लगते हैं। 


                                         अौषधीय  गुण         

विषनिवारक , दरद  विनाशक  गुण  है।  कब्ज , उलटी , दस्त , अरुचि ,पित्ती , गाँठ ,प्लेग , हैजा , कफयुक्त  खांसी , कृमि रोग , दाद , बवासीर , सूजन , वात  एवं कफ  सम्बंधित  रोगों में  लाभप्रद  होता  है।  कच्चे  पपीता  का रस  आंत्र  कृमियां  को  नष्ट  करता  है।  गर्भवती  स्त्री  को  पपीता  का सेवन  करना  हानिकारक  माना  गया  है। 


                                          घरेलु  चिकित्सा 

कब्ज में --पपीता  एक उत्तम  कब्ज  निवारक  फल है।  प्रातः  २५० ग्राम  पका  पपीता  तथा भोजन  के बाद  १५० ग्राम  पपीता  का  नित्य  सेवन  करना  चाहिए।

भूख की  कमी  एवं  अपच में पके  हुए  पपीता  को  छीलकर  काट लें  तथा  नीबू  का रस   निचोड़कर  चुटकीभर  सेंधा -नमक  एवं  भुने हुए जीरे  को पीसकर  थोडा सा  जीरा  पाउडर  डालकर  पपीते का सेवन  करेंगे  तो  पाचन ठीक  तरह  से  होगा  तथा  जठराग्नि  भी तेज  होगी।  भूख खुलकर  लगेगी , पाचनशक्ति  भी बढ़ेगी।

ऑव में --पपीते  कब्ज  को दूर कर ऑव  को नष्ट करता  है।  ऑव  के मरीज  को सदैव ही  टेल हुए  खाद्य  पदार्थ  तथा  मिर्च -मसाले  से परहेज  रखना  चाहिए  तथा  नियमित  पपीते  का सेवन  करना चाहिए।  भोजन  के तुरंत  बाद  छाछ  पीना  चाहिए।  छाछ  में भुना  हुआ  जीरा  एवं  सेंधा  नमक  या  काला  नमक  भी  स्वाद  के अनुसार  मिला  लें।

दन्त  ब्याधियों  में --दांत एवं मसूड़ों  की  तख़लीफ़ों  से बचने  के लिए  पपीता  का  सेवन  करना  चाहिए।  इससे  दांतों का  दर्द  एवं  मसूड़ों से खून  आना  तथा  सूजन  इत्यादि  से  छुटकारा  मिलता है।

नेत्रों के लिए ---नित्य  पपीता  का  सेवन  करने से  नेत्र -तयोति  अच्छी  बानी  रहती है।

प्लेग होने पर --प्लेग का  आक्रमण  होने पर  पपीता का  सेवन  करने से  २४ घंटे  के अंदर  सन्धिओं का  दर्द  दूर  होता  है  तथा  इसमें  प्लेग  की गांठ को  नरम  कर  देने  की  अद्भुत क्षमता  है।
 
पपीता  के १२५  मीली  ग्राम  बीज को  पानी में  पीसकर  हर  दो -दो  घंटे  में  पिलाने  से  वमन  विरेचन  द्धारा   शरीर  का सारा  विष  नष्ट  हो  जाता है। रोगी को लाभ होता है।

हैजा  में --पपीता  के बीज  २५०  मिली ग्राम  मात्रा  में  गुलाबजल  के  साथ  घिसकर  पिलाने से  लाभ  होता है।  दिन में ३  बार दें।

अतिसार  में --अधि  रत्ति  मात्रा  में  पपीता  के  बीज पानी के साथ घिसकर  पिलाने से अतिसार  में  लाभ  होता  है।

विषैली  जंतुओं के  दंश  पर ---विषनाशक  प्रभाव  होने पर  पपीता के  बीज  को  घिसकर  दंशस्तल  पर  लेप करने  से  लाभ  होता  है।


गाँठ  पर --शरीर पर किसी भी प्रकार की गाँठ  पर  पपीता  के बीजों को घिसकर  नित्य  लेप  करने  से लाभ  मिलता है।  कच्चे  पपीता  का रस   २० ग्राम  नित्य  सेवन  भी करते  रहने  से  गाँठ  समाप्त  हो जाती है।

उदर  शूल  में ---आँतों  में  दर्द होने पर  आधी  रत्ती  पपीता  के बीज  घिसकर  पानी  के  साथ  पिलाने  से  दर्द  दूर  हो जाता  है।

सुन्नता  एवं  चर्म  विकारों  में --खुजली या  शरीर  के किसी अंग  में  सुन्नता  होने पर  तिल के तेल  में  पपीता के बीज  पीसकर , पकाकर  छन लें  तथा  यह सिद्ध  तेल  रखें।  इस तेल से  प्रभावित  अंगों की मालिस  करने से लाभ होता है।  कच्चे  पपीता  का दूध लगाने से  दाद  आदि  चार्म रोग  मिटते  है।

अस्थि  क्षय  पर ---अस्थिओं के क्षरण  होने पर  सन्धिओं के दर्द , अस्थि विकृति आदि व्याधिओं  का जन्म लेती है। पपीता का नियमित सेवन अस्थिओं  को मजभूत  बनाता  है।  इसका नित्य सेवन करने से  विकृति दूर होती है।

सर्दी , जुखाम में --जिन्हे  बार बार  सर्दी - जुखाम , एलर्जी  जैसे रोग सताती है , उन्हें नित्यप्रति  पपीते का सेवन कराना चाहिए।  इससे इम्युनिटी  बढ़ती  है , रोग नष्ट  होते हैं।

अम्ल  पित्त  में --पपीता का फल सेवन करने से  अम्ल -पित्त  दूर होता है।  जठराग्नि  प्रदीप्त  करता है।  खट्टी  डकार  आनि  बंद  होती है। यकृत एवं तिल्ली  की  बृद्धि  भी  मिटती  है।

पेट के कृमि रोग में ---पपीता  के बीजों को एक रत्ती  की मात्रा  में ले कर पीस लें , एक कप  गरम  पानी में  घोल कर  खली पेट ८-१०  दिनों तक  सेवन करने से  आंत्र  कृमि  नष्ट हो जाते हैं।  कच्चे  पपीते  का रस  भी  ५० ग्राम  नित्य खली पेट सेवन करने से  कृमि  नष्ट हो जाते  हैं।

यकृत की कमजोरी में --पपीता को लिवर टॉनिक  कहा गया है।  पीलिया  इत्यादि  यकृत (लिवर ) के  विकारों में  पके हुए  पपीता का  नियमित  सेवन  करना  चाहिए।  पपीता  यकृत  विकारों को  नष्ट  कर  याकुत  की  कार्य  - प्रणाली को  ठीक  करता है।

बौनापन  में --बच्चों की  लम्बाई  बढ़ने  के लिए पपीता  का नियमित  सेवन  करना चाहिए।  इससे  पोषक  तत्व  की  पूर्ति  होती है।

ह्रदय रोग में --पेड़ में  लगे कच्चे पपीते को  चाकू से चीरे  लगाने पर  पपीते का दूध  निकलता  है।  कच्चे  पपीते का दूध  १०-१२ बून्द  बतासे पर  टपकाकर  प्रातः  सेवन करने से ह्रदय के लिए लाभप्रद  होता है।  कच्चे पपीते की खीर  बनाकर  सेवन करना चाहिए। पपीते  के ५० ग्राम  हरे पत्तों को  पानी में  उबाल कर  बनाए काढ़े में  सौंफ , इलायची , काली मिर्च  तथा काले नमक को  पीस कर बनाया  पाउडर  ३ ग्राम  मिलकर  रात को  सोते  समय  सेवन करना चाहिए। उपरोक्त  उपचार ह्रदय  रोगों में लाभप्रद  है।

कष्टार्त्तव  में --जिन महिलाओं को अनियमित या  कष्टप्रद  मासिक  धर्म  होता है उन्हें  कच्चे पपीते  का रस   १०० ग्राम  नियमित  सेवन  करना चाहिए।

कैंसर में --कच्चे पपीते को  सलाद  के रूप में  सेवन करना  तथा कच्चे पपीते  को  कसकर  दही के साथ  रायता  सेवन करना चाहिए।

मूत्रविकारो में --पेशाब में  जलन  , दर्द , संक्रमण , बहुमूत्र  इत्यादि  में  पके पपीता का  सेवन लाभकारी  होता है।

चेहरे के सौंदर्य  के लिए --कच्चे पपीते को  काटकर उसका  रस  चेहरेकी  त्वचा पर  रगड़ने  से चेहरे के दाग ,  कालिमा  , धब्बे , किल-मुहांसो पर रस  लगाने से लाभ होता है।  पके पपीते को मसलकर  पेस्ट  बनाकर  चेहरे पर  आधा घंटे  तक  लगाकर  रखें  तत्पश्चात  स्वच्छ  पानी से चेहरा  धो  लें तथा  सूती  कपडे  से  पोछ  कर चेहरे पर  नारियल  या  तिल का तेल लगाएं। यह प्रयोग  नियमित  करने पर लाभ होता है।

डेंगू ज्वर  में ---डेंगू ज्वर में  रक्त  के प्लेटलेट्स  घाट जाते हैं।  २० ग्राम  गिलोय  के रस  के साथ  पपीते के ताजे पत्तों  का  २० ग्राम रस  निकालकर  दिन में  दो बार ३-४  दिनों  तक देने से प्लेटलेट्स  तेजीसे  बढ़ने लगते हैं। गेहूं के  जवारे का रस  , गिलोय  का रस  तथा  गुड़हल  के पत्तों का रस  एवं  एलोवेरा  का रस  भी  प्लेटलेट्स  बढाने  के लिए  उपयोगी  एवं  सहायक  होता है।

पित्त की पथरी  में --यह पित्ताशय  की पथरी के लिए प्रभावी प्रयोग है।  पपीते के  ताज़ी  जडी  खोद कर  लाएँ  तथा  गमले में  गड दें  ताकि  नित्य  प्रयोग के लिए  ताज़ी बानी रहे।  अव   प्रतिदिन  ५ ग्राम पपीता  की जड़  धोकर  साफ़  कर ले , तत्पश्चात  पानी के साथ  पीसकर  छान  लें  तथा  एक कप पानी  के साथ  निराहार  प्रातः सेवन कराएं।  यह प्रयोग  २१ दिन तक करें फिर  जांच  करा लें।  

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