गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

स्वस्थशरीर | अौषधीय गुण | घरेलु चिकित्सा | गाजर


             गाजर  को  सभी  खाते  हैं,  परन्तु  इसके आयुर्वेदिक  उपयोग  को  अधिकांश  लोग  नहीं  जानते।  गाजर  अम्लता  को  नष्ट  करता है , यकृत  रोगों  को  दूर करता  है।  गाजर  में  विद्यमान  विटामिन  कैंसर  से बचाता  है।

      गाजर  का  रस  एंटीसेप्टिक  होता है ,  यह शरीर में  किसी भी  प्रकार  की  सडन  क्रिया  को  रोकता है।   गाजर  के रस  में  इन्सुलिन  तथा  अन्य  लाभदायक  हार्मोन  बना  देने  का  गुण  भी  होता है।  इसमें  म्युसिन  नामक  तत्व  आतंरिक  त्वचा  के लिए  मलहम  का काम  करता है।

      गाजर में  पर्याप्त  मात्रा में  बीटाकेरोटीन , विटामिन -ए , बी , सी , डी , ई   तथा  अनेक   खनिज  लवण  लोहा , मैग्नीशियम ,  पोटैशियम ,  सोडियम ,  फॉस्फोरस  आदि    एवं  अन्य  सरकरा  विद्यमान  हैं।   गाजर  रक्त  की  कमी  को  दूर  करता  है।

      आयुर्वेदिक  की  अनुसार  गुण  और  धर्म 

                  रुचिकर,  हृदय  के  लिए  हितकारक,  पाचनशक्तिवर्धक, मूत्र  बढ़ने  वाला  त्रिदोषशामक  होता  है।   बवाशीर ,  दमा ,  हिचकी,  शुक्र  दौर्वल्यनाशक ,  स्नायुसंस्थान  के  लिए  बलकारक ,  रक्त  शुद्धिकारक ,  कफ -वात  निकालनेवाला  होता  है।   रक्तविकारनाशक ,  दुग्धवर्धक ,  पथ्रिनाशक ,  उदररोग निवारक  होता  है।   खांसी  एवं  सूजन  दूर  करता  है।  मूत्र  की  रुकावट  एवं  जलन  को  नष्ट  करता  है।   रक्त  को  क्षारधर्मी  बनाकर  त्वचा  को  स्वस्थ   सुन्दर  बनाने  का  गाजर  में  महत्वपूर्ण  गन  है।   जीवनी  शक्ति  बढ़ाता  है।  संधिवात , गठिया  का  निवारण  होता  है।   इसमें  विद्यमान  विटामिन-डी  हड्डियों  और  दांतों  के  लिए  उत्तम  है।


    गाजर को दोपहर  के भोजन के पूर्व  सलाड के रूप में तथा रसाहार (जूस )  के रूप में  दोपहर के भोजन के ३ घंटे  बाद  अर्थात  ३-४  बजे  का  समय  उचित है।  गाजर के  दर्पनाश  के लिए  जीरा , राई  और गुड  का  प्रयोग  करते हैं।

                                    घरेलु प्रयोग 
   अनिद्रा में  --एक  गिलास  गाजर का  रस  नियमित  सेवन  कराने  तथा  गाजर की  सलाद  का  पर्याप्त  मात्रा  में  नियमित  सेवन  करने से  मानसिक  अवसाद ( डिप्रेसन ) अनिद्रा  एवं  कमजोरी  दूर होती है।  मस्तिष्क   को  पोषण   मिलता है।  स्नायु  मजबूत  होते हैं।  शरीर में  उपस्थित  विजातीय  द्रव्य  पसीना  एवं मॉल- मूत्र  आदि  उत्सर्जन  मार्गों  के माध्यम  से बहार  निकल  जाते हैं।

कब्ज में  --- गाजर  स्नायुओं  के लिए बलकारक  होने एवं  रेसा की मात्रा  भरपूर  होने के  कारण  आंतों  को स्वस्थ  बनाता  है  एवं मॉल की  रूकावट  दूर  कर  कब्ज  निवारण  में  भरपूर  भूमिका  निभाता है।  बवासीर  रोग से  बचाव  होता  है।

जोड़ों  के दर्द  में ---रक्त  में यूरिक  एसिड  आदि  बढ़ने  से जोड़ों  में विद्यमान  साइनोवियल  फ्लूइड ( चिकनाई ) समाप्त  हो जाती है।  जोड़ों  के  संचालन  में  बाधा  आती है ,  कार्टिलेज  एवं  अस्थिओं  का  क्षरण  होने  लगता है।  गाजर  का  कैल्शियम  एबं  विटामिन डी  हड्डीओं  एवं  जोड़ों को स्वस्थ बनाने का  काम करता है।  यूरिक एसिड को  बहार निकाल  कर  जोड़ों में  लचीलापन  बढ़ाता  है , जिससे  जोड़ों के  दर्द से मुक्ति  मिलती है।  जब  गाजर उपलब्ध  हो , तब  नित्य  प्रति  सलाद  या  जूस  के रूप में  उपयोग करना चाहिए।  गाजर  क्षारीयता  बढ़ाता  है , जिससे  अनेक रोगों से  बचाव  होता है।

माताओं को  दूध  की  कमी  में  -- गाजर  का  जूस  माँ   और  बच्चे  दोनों  के  स्वस्थ्य  के  लिए  वरदान  होता  है।   दूध  पिलानेवाली  माताओं  को  दूध  की  कमी  होने  पर  नत्यप्रति  २५०  ग्राम  गाजर  का  जूस  देने  से  दूध  की  मात्रा  बढ़ती  है  या  गाजर  का  हलवा  खाने  के  बाद  एक  गिलास  गाय   का  दूध  पिलाना  चाहिए।

बच्चों  के  दन्त  निकलने  में  कठिनाई  --- बच्चों  के  दांत  निकलते  समय  नित्य  गाजर  का  रस  सेवन  कराने से  आसानी  से  दांत  निकलते  हैं।  दूध  ठीक  तरह  से  पचने  लगता  है।

पीलिया  तथा  आँतों के  अल्सर  में  ---गाजर  को  अच्छी  तरह  धोकर  गाजर  का  रस  दिन  में  २-३ बार  एक  गिलास  पिलाना  लाभप्रद  होता  है।  गाजर  यकृत ( लिवर ) तथा  छोटी  आंत  और  बड़ी  अंत  का  क्रिया  को  ठीक  करता है।

पेट में  कृमि  होने पर --पेट में कृमिओं के  कारण पेट  दर्द , वायु फुल्लता  एवं  ऑव  तथा  बड़ी  आंत में  सूजन  जैसे  कष्ट  उभरते  हैं।  गाजर का  रस   खाली पेट  नित्य  सेवन  करने से  कृमि  नष्ट  हो जाते  हैं।

आधा  शिर  दर्द में  ---नित्य होनेवाले  आधे  शिर  में  तेज  असहनीय  दर्द में गाजर के पत्तों पर  घी  चुपड़ कर  आग में  थोड़ा  सेख लें  फिर  पत्तों का  रस  निकालकर  दो दो  बून्द  रस  नाक के  छिद्रों में टपकाएं ,इससे छींके  आएँगी  तथा दर्द दूर होगा।

पथरी में --मूत्राशय  की पथरी  में  गाजर  का  रस सलगम  के  रस  के साथ  मिलाकर  दो  माह  तक  नियमित पीनेसे   पथरी गलकर  निकलती  है।  पथरी बहत  बड़ी  हो तो  आपरेसन  द्वारा  निकलवाना  उचित  रहता है।

कष्टप्रद  मासिक धर्म (कष्टार्तव ) में --महिलाओं  के  कष्टर्त्तवा  रोग  में  गाजर  के  बीज  १०  ग्राम  तथा  गुड  २५  ग्राम  लेकर  दोनों  को  १  गिलास  पानी  में  उबालें  और  काढ़ा  बनाकर  मासिक  धर्म  के  १०  दिन  पहले  से  नित्य  सुबह  शाम  सेवन  कराएं,  इससे  मासिक  की  रूकावट  दूर  होगी।   गर्भाशय  के  दोषोों  की  निबृति  होगी।

एक्जिमा  इत्यादि चर्म  रोगों  में --कद्दूकस  से   गाजर  कास  लें  तथा  उसमें  थोडासा  नमक  मिलकर  एक्जिमा  वाले  स्तान   पर  पुल्टिस  लगाकर  रखें ।  नियमित  प्रयोग  जारी  रखें  तथा  इन  दिनों  भोजन  में सफ़ेद  नमक  को  बंद  रखें।  पूर्णतः  बिना  नमक  का  भोजन  लाभ  होने  तक  करें।  उपचार  के  दिनों  में   गाजर  एवं  दूध  का  ही  सेवन  करें ,  तो  लाभ  जल्दी  मिलता  है।  चर्मरोगों   में  सफ़ेद  नमक  का  सेवन  हानिकारक  होता  है।  प्राकृतिक  आहार  फल  या  सलाड  या  सूप-जूस  इत्यादि  रक्त  को  शुद्ध  करने  में  अधिक  महत्वपूर्ण  है।  समयसाध्य  रोग  होने  से  इसका  उपचार  लम्बी  समय  तक  चलाने  पर  लाभ  होता  है।

क्षय  रोगों में  --गाजर  को  कसकर  उसे  बकरी  के  दूध  के  साथ  धीमी  आंच  पर  गर्म  करें ,  थोड़ी  देर  पकाने  के  बाद  दूध  को  छान  कर  ठंडा  कर  दिन  में  दो  तीन  बार  सेवन  करें।  गर्म  की  सुरक्षा   हेतु  उपरोक्त  प्रयोग  से  महिलाओं  के  गर्भस्राव  रोग  में  पहले  माह  से  ही  सेवन  कराने  से  लाभ  होता  है।

खुनी  दस्त  में --खुनी  दस्त  में  गाजर  का  रस   १००  ग्राम  लेकर  उसमें  उतनी  ही  मात्रा  में  बकरी  का  दूध  मिलाकर  सेवन  कराने  से  लाभ  होता  है।

पिंडलियों  में  ऐंठन --इस  रोग  में  गाजर  को  भूनकर  चीनी  के  साथ  सेवन  कराने  से  पिंडलियों  की  ऐंठन दूर  होती  है।


गाजर  की  खीर --२५०  ग्राम  गाजर  को  अच्छी  तरह  धोकर  कसकर  आधा  किलो  दूध  में  डालकर  स्वाद  के  लिए  इलायची  आदि  मिलाकर  धीमी  आग  पर  पकने  दें।   पकने  के  पश्चात  उसमें  मिसरी   मिलाकर  उतार  लें।   पाचनशक्ति  अच्छी  हो  तो  अन्य  सूखे  मेवे  तथा  ग्रुत  मिलकर  सेवन  कराएँ।  यह  उत्तम  पौष्टिक   खीर  है  जो  शारीरिक  एवं  मानसिक  स्वास्थय  के  लिए  उपयोगी  है।

हृदय  की  दुर्बलता  में  --हृदय  रोग  में  गाजर  लाभप्रद  है।   गाजर  के  मौसम  में  नित्य  दोपहर  के  भोजन  के  ३  घंटे  बाद  एक  गिलास  गाजर  का  रस   लेने  से  हृदय  को  बल  मिलता  है।  रक्त  की  शुद्धि  होती  है।

स्वास्थ्यरक्षक  पेय --एक  पाव  गाजर  के  रस  में  ५००० (आई.यू )  विटामिन-ए  होता  है।  लगभग  १२५  ग्राम  गाजर  कसकर  एक  गिलास  दूध  में  पकाकर ,  छानकर  चाय  की  तरह  नियमित  पियें।  यह  शारीरिक  एवं  मानसिक  दुर्बलता  को  दूर  करता  है।  मिठास  के  लिए  खजूर , मुनक्का   या  गुड  का  प्रयोग  करें।  इसे  गाजर  की  चाय  कहते  हैं।

निम्न  रक्तचाप  में --नियमित  गाजर  का  रस   २००  ग्राम  सेवन  करने  से  लाभ  होता  है।

मधुमेह  में --अन्य  शर्करा  की  अपेक्षा  गाजर  की  शर्करा  मधुमेह  के  रोगी  आसानी  से  पचा  सकते  हैं।  गाजर  में  प्राकृतिक  रूप  से  इन्सुलिन  होता  है। नियमित  १५०  ग्राम  गाजर  के  रस   में  ५०  ग्राम  पालक  के  रस   के  साथ  सेवन  करना  चाहिए।   

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