शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

स्वस्थशरीर । आयुर्वेदिक औषधि । गिलोय


गिलोय  अनेक  रोगोंसे  रक्षा  करनेवाली  जीवन  शक्ति को  बढ़ाने  वाली  निरापद  प्राकृतिक  एंटीबायोटिक  औषधि  है। गिलोय  टी.बी , कैंसर , टाइफाइड  एवं  सभी प्रकार के ज्वारों में  उपयोगी है।

गिलोय  के  प्रचलित  नाम गुडुची , अमृता , गलो , गुडबेल , मधुपर्णी  आदि है। नीम  के पेड़ पर  चढ़ी  इसकी  लता  बेहद  लाभकारी  होता है।  इसकी लता  जिस पेड़ पर चढ़ती है , उस पेड़ की सारे  गुण  भी  अपने अंदर  समा  लेती है। यह  औषधि  कमजोरी  एवं  बृद्धावस्था  दूर  करती है। गिलोय  की लता  जो ऊँगली  जैसी  मोटी  तथा  धूसर  रंग  की  हो , वह औषधि  उपयोगी होता है।  इसकी लता  जितनी पुरानी हो उतनी ही  गुणकारी  होती है। 

गिलोय की गुण एवं  धर्म --

बलकारक , रक्तशोधक , मूत्रल , पित्तनाशक , ज्वर  एवं  त्रिदोषनाशक  है।  रक्त पित्त , वात  रक्त  तथा  पित्त  दोष  जन्य  रोगोंको  नष्ट  करने में  सक्षम  है।  पीलिया , मधुमेह , क्षयरोग , टाइफॉइड , कैंसर , भस्मक रोग , ह्रदय रोग , प्रमेह , सुजाक , कुष्ठ , चर्मरोग , हाथीपाँव , खाँसी , कृमि , अम्लता , ग्रहणी  विकार  दूर करने  वाली  अौषधि  है। मात्रा --हरी  ताजी  गिलोय का  रस  १० मी. ली.  से  २०  मी. ली. , गिलोय का  चूर्ण --४ से  ६  ग्राम  तक , गिलोय का  सत्व --१ /२  ग्राम  से ३  ग्राम। 

उपयोग --वात  सम्बन्धी रोगों में  घृत  के  साथ  पित्त  सम्बन्धी  रोगों में  मिसरी  के  साथ  तथा  कफ  सम्बन्धी  रोगों में  शहद  के साथ  प्रभावकारी  होती है।  आम वात  में  गिलोय  के क्वाथ  के साथ  सोंठ  का  चूर्ण  मिलाकर  तथा  हाथीपाँव  में  गोमूत्र  के साथ  गिलोय का  प्रयोग  किया  जाता है। 

सभी  प्रकार के ज्वर  में ---प्राकृतिक  एंटीबायोटिक  अौषधि  होने से  सभी  प्रकार  के ज्वर , बार -बार  आने वाले  जीर्ण  ज्वर , मोती  ज्वर  इत्यादि में  गिलोय  बिना  कमजोरी  के  रोग  निवारण  करती है।  गिलोय के साथ  धनिआ , नीम  की  छाल  का  आतंरिक  भाग , कमल  की नाल  और  लाल  चन्दन  लेकर  क्वाथ  बनाकर  दिन  में  २ बार  सेवन  कराना  चाहिए। 

ज्वर के  बाद  की  निर्बलता  को दूर करने  के लिए  गिलोय  और सोंठ , सारिवा  का  फांट  २० मी. ली.  की मात्रा  में दिन में  ३ बार  देना  चाहिए।  गिलोय के  ताजे  रस  में  शहद  या  मिसरी   मिलाकर  दिन में  ३ बार  देने से  काला  ज्वर में  लाभ होता है। 

पागलपन , दिमागी  असंतुलन  में --पित्त के  प्रकोप से  पागलपन  के लक्षण  हो , क्रोध से  निरर्थक  बोलना , अनिद्रा ,लाल  ऑंखें  इत्यादि  लक्षण  दिखाई  देने पर  गिलोय  के साथ  ब्राम्ही  को  मिलाकर  दिन में  ३ बार  पिलाने से २० दिन में  पूरा  लाभ   मिल  सकता है। 

प्रमेह  में --साधारण  विकार में  गिलोय  का रस  शहद के साथ  दिन में २ बार सेवन  करने  से  लाभ मिलता है। 

शीत  पित्त  में --गिलोय  के रस  में  बाकुची  चूर्ण मिलाकर  लेप  करने  से या मालिस करने से  लाभ मिलता है। 

आँखों के रोग में --पित्तज  दोषों के  कारण  आँखों  में  लाली  तथा  नेत्र  दॄष्टि  कमजोर  हो तो गिलोय का रस  १० मी. ली.  शहद  या मिसरी  के साथ  सेवन  कराना  चाहिए। 

मेद  रोग में --गिलोय और त्रिफला  का क्वाथ  बनाकर १  ग्राम  शिलाजीत  तथा  १ रत्ती  लौहभस्म  मिलाकर  प्रतिदिन  सेवन  कराने  से  लाभ मिलता है। 

मूत्रकृच्छ  और  सुजाक में --गिलोय , आंवला , गोखरू , अश्वगंधा का क्वाथ  दरद  सहित  वातज  मूत्रकृच्छ में  २० मी. ली.  दिन में  तीन  बार  सेवन  करने से  लाभ होता  है।

ताजी  गिलोय  ५० ग्राम  पीसकर  २५० मी. ली.  पानी में  छानकर  कलमी शिरा , जवाखार , शीतलचीनी  का चूर्ण  ५-५  ग्राम तथा  ५० ग्राम  चीनी मिलाकर , छानकर  ४ -४  घंटे  के अंतर से  ४  बार  पिलाने से  सुजाक  के सारे  कष्ट  दूर  होते है।

यकृत  की  कमजोरी --लीवर  की खराबी  की बजह से  पीलिया , कामला , जलोदर  इत्यादि  जितने से रोग खड़े होते हे। इन  रोगोंमे  गिलोय  बड़े उपकारी  सिद्ध  होता हे।

संधि वात  में --गिलोय का  काढ़ा  बनाकर  उसमे  ५ मी.  ली.  अरंडी  का तेल  मिलाकर  सेवन  करने से  जटिल संधि  वात  दूर  होता है।