सोमवार, 30 नवंबर 2015

स्वस्थशरीर | औषधि गुण | घरेलु चिकित्सा | तुलसी


तुलसी एक निरापद  एंटीबायोटिक  औषधि  है।  इसे  सर्व रोगहरी  कहा  जाता  है।  यह  औषधि  शारीरिक  एबं  मानसिक  रोगों का  शमन  करती  है।  आयुर्वेद  की  दॄष्टि  से  भी इसे  अनेक  रोगों में  प्रभावकारी  पाया  गया  है।  तुलसी का पौधा  भी  पीपल  की तरह  सतत  ऑक्सीजन  प्रदान कर मानव मात्र  के लिए  परम कल्याणकारी  है।  विकिरण  के  दुष्प्रभाव  को दूर  करने  का गुण  तुलसी में  है।  तुलसी  दो  प्रकार  है --एक  रामा  तुलसी , जिसके  पत्ते हरे  होते  हैं  तथा  दूसरी  श्यामा , जिसके  पत्ते  काले  होते  हैं।  आयुर्वेद  ने  दोनों  के गुण  सामान   बताएं  है। 

तुलसी  को  वैष्णवी , बृंदा , तुलसा  विष्णुपत्नी , सुगंधा , पावनि  आदि  नामों  से जाना  जाता  है।  आयुर्वेद  मतानुसार  तुलसी कृमिनाशक , वातनाशक , कफ विकारों  को दूर  करनेवाली , उलटिनाशक , मूत्रावरोध  दूर करने वाली , पित्तकारक , ह्रदय के  हितकारक , ज्वरनाशक , चर्मरोगनाशक , हिस्टीरिया और  बेहोशी  दूर  करनेवाली  है। 

 सावन  के  महीने  में  तुलसी के पौधे  को  घर - घर  रोपित  स्थापित किया  जाता  है।  इसे  अभियान  के रूप  में  भी  चलाया  जा सकता  है। इसके  पौधे का  बितरण  करना पुण्यदायक  माना  गया  है।  अनेक रोगों को  दूर करने  का गुण  एबं  सरलता  से  उपलब्ध  होने  के कारण  तुलसी का  महत्व  कई  गुना  बढ़  जाता  है।


सभी  प्रकार  के वात  रोग  एबं  कफ  से सम्बंधित  बिमारिओं  में  इसका प्रभाव  बहुत  ही  कारगर  पाया  गया है। तुलसी में कैंसररोधी  प्रभाव भी है।  स्थानीय  लेप के रूप में  घाव ,फोड़े , संधियों  की सूजन , पीड़ा , मोच  अआदीमें  इसका उपयोग  प्रभावी  होता है।  मानसिक अवसाद  एबं  लो  ब्लूडप्रेसर की स्थिति  में  इसे  त्वचा पर  मलने से  तुरंत  स्नायु  संस्थान  सक्रिय  होता है।  शरीर के बाहरी  कृमिओं को  नस्ट  करने में भी इसका लेप  करते  हैं।  उदरशूल  तथा  अंतोकी  कृमिओं को  नस्ट करने  में भी उपयोगी  है।

तुलसी  सभी  प्रकार के  ज्वारों  का चक्र  तुरंत  तोड़ देती है।  क्षय रोग  नस्ट करने में भी प्रभावी  है।  जीवनी शक्ति  बढाती है तथा  हानिकारक  जीवाणुओं  को  पलने  नहीं  देती है।  जहाँ  तुलसी के पौधे होते हैं वहां की  वायु  बिषाणु  रहित  तथा  सुगन्धित  होती है।

बिभिन्न  रोगोंमें  तुलसी के प्रयोग 
खांसी में ---अड़से  के पत्तों  का रस  एबं  तुलसी के पत्तों  के रस को शेहद  के साथ  मिलकर  सेवन करने से  खांसी  में  बड़ा  लाभ  होता  है।

चार  पांच लोप  भूनकर  तुलसी के पत्ते  के साथ  सेवन  करने से  सब तरह  की खांसी में लाभ होता है।

अदरक के रास के साथ  तुलसी के पत्ते का  रस  शहद  के साथ  चटाने  से भी  लाभ  मिलता है।  काली तुलसी के पत्तों का रस काली  मिर्च  के साथ  सेवन करने से खांसी का  बेग  संत होता  है।

दांतों के दर्द में ---तुलसी के पत्ते  काली मिर्च के साथ  पीस  कर छोटी  छोटी सी गोली बनाकर  दर्द वाले  दांतों के विच  दवा कर  रखने  से  दन्त  दर्द  बंद  होता है।

पीनस  रोग  में ---तुलसी के  पत्तों  का रस  निकालकर  हल्का  गरम  करके  २-३  बून्द  कान  में  टपकाएं।  इससे  कांन के  दर्द  बंद  हो  जाता  है।
            तुलसी  के  पत्तों का  रस  दो  भाग  तथा  सरसों  का  तेल  एक  भाग  मंद  आग  पर  गरम  कर  सिद्ध  तेल बना  लें।  यह  तेल  जब  भी  कान में  दर्द  हो , १-२  बून्द डालने  से  कान  की पीड़ा दूर होता है।

दाद में ---चर्मरोग में तुलसी की बड़ी प्रभावी ओषधि   माना  गया  है।  तुलसी के  पत्तों को  पीसकर  उसमें  नींबू   का  रस  मिलाकर  कुछ  दिन तक  दाद पर  लगाने  से  दाद  समाप्त  हो जाता  है।

अन्य  चर्मरोगों  में ---तुलसी के पत्तों को  गंगा जल  में  पीसकर  नित्य  लगाने से  सफ़ेद  दाग  मिट  जाते  हैं।  तुलसी के पत्तों  का रस  दो  भाग  तथा  तिल का  तेल  एक  भाग  लेकर  मंद  आँच  में  पकाएं।  ठीक  पाक जाने  पर  छान  लें।  यह  तेल  खुजली  इत्यादि  चर्मरोगों  में भी  लाभकारी  है।  चेहरे के सौंदर्य  के लिए  तुलसी के पत्तों  को  पीसकर उबटन  लगाएं।

मलेरिया  में --एक गिलास  पानी में  २१  तुलसी के पत्ते  एबं  दो काली मिर्च  पीसकर  डालें  तथा इस पानी को  उबालें जब  आधा  पानी  शेष  रहे  तब  उतारकर  ठंडा  करें।  चाय  की तरह  यह  काढ़ा  रोगी को पिला दे , इस से  पसीना आकर  ज्वर  दूर होगा।

 सर्प  विष  में ---तुलसी विष नाशक  है।   सर्प दंश  की स्थिति  में तुलसी के पत्तों  का रस  अधिक से अधिक  मात्रा  में मिलाएं  तथा तुलसी की  जड़ को  घिसकर  शरीर में दंश स्थल  पर लेप करें।  सर्प दंश से पीड़ित  रोगी  यदि  बेहोशी  में हो  तो  उसके  कान एबं  नाक में  तुलसी के पत्तों का रस  डालना  चाहिए। इससे  बेहोशी दूर  होगी एबं  सर्प विष  का प्रभाव  दूर होगा। केले के  तने का  रस  भी  तुलसी के पत्तों  के रस के  साथ  देने से बड़ा  प्रभावकारी  होता  है।