गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

स्वस्थशरीर | घरलू चिकित्सा | जोड़ों का दर्द


शरीर में  अम्ल  तत्व  बढ़  जाने  से  'जोड़ों ' का दर्द  होता  है।  अम्ल  तत्व  के कारण  रक्त  दूषित  हो  जाता

 है।  शरीर में वायु  का  प्रकोप बढ़  जाने  से  दूषित  पदार्थ  जोड़ों  में  रुकने  लगते  हैं , जिनसे  दर्द  होता  है 

 और  शरीर  में  अकड़न  आ  जाती  है।  रक्त  दूषित  होने  से  शरीर  का  विषाक्त  पदार्थ  पुरे  शरीर  में

  संचारित  होता  है , जिससे  ज्वर  भी  रहने  लगता  है।  साथ  साथ  जोड़ों में  सूजन  आ  जाती  है।   धीरे  धीरे

  यह  रोग  पुरे  शरीर के  जोड़ों में  फैल  जाता  है , जिससे  रोगि  का  चलना , बैठना  आदि  मुस्किल  हो जाता 

 है। 

   रक्त  के  दूषित  होने से  ही  रोग होता  है।  जो  कारण  स्वास  तंत्रों  के  कारण  है , वे  ही  कारण इस  रोग के

  भी  है।  इसमें  रक्त  अम्ल  तत्व  के  आक्लॉजिक  एसिड  अधिक  बनने  से  लगता  है , जो  शरीर  के  जोड़ों  

में  एकत्र  होकर  सूजन,  दर्द  तथा  अकड़न  पैदा  करता  है।  यही  इस  रोग  का  प्रधान कारण  है। 

प्राकृतिक  उपचार 

  त्रिफला  चूर्ण  से  पेट  को  साफ  करना  पहला  उपचार  है।   एक  चम्मच  त्रिफला  चूर्ण  गुनगुने  पानी  से

  रात  को  सोते  समय  अंतिम  वस्तु के  रूप  में  ले लें। 

स्नान  करने  वाले  बड़े  टॉब  में  १००  ग्राम  मैग्नेशिया  नमक  तथा  १००  ग्राम  खाने  वाला  नमक  गर्म  पानी

  में  डालकर  आधा  घंटा  रोगी को  उसमें लिटाना  और  सभी  जोड़ों  तथा  शरीर  पर  तौलिए  से  पानी  में

  मालिस  करनी  चाहिए।  जब तक  रोगी  टब  में  रहे, सर पर  ठंडे  पानी  का  तौलिया  रखें।  सिर  पर  गर्म

 पानी  न  डालें।  उसके  बाद  गर्मी  हो  तो  ठंडे  पानी से  स्नान  करवाएं  और  सर्दी  हो तो  हलके  गर्म  पानी

  से स्नान करवाएं  तथा  शरीर को सुख कर  कपडे  पहनकर  स्नान घर  से  वाहर  निकालें।   उसके  बाद  ३०

 मिनट या  एक  घंटे  केलिए  रोगी को  सुला  दे।  सुलाने  से  पहले  जोड़ों  को  थोड़ा  व्यायाम  दें  ताकि  जोड़ों में

 जमा हुआ  विकार  अपना  स्थान  छोड़ें। 

बात टब  न हो तो  दस  मिनट  का  वाष्प  स्नान  या  गर्म  पाव  का  स्नान  दे।  ३०  मिनट का  धुप  स्नान  दें

 और   धुप में  शरीर तथा  जोड़ों की  किसी  आयुर्वेदिक  औषधि  युक्त  तेल  मालिस  करें  या  लाल  रंग की

  बोतल  में  नारियल के  तेल को २० -२५  दिन तक  धुप में  रखें।  ऐसा  करने से  यह तेल भी  जोड़ों  की

  मालिस  करने  योग्य  बन जाएगा।   जब शरीर  धुप  में पूरी  तरह  गर्म हो जाए  तो जोड़ों को  खोलें  बंद  करें

  और उन्हें  पूरा  वयम  दें।  

यौगिक  उपचार ---

  • योगोपचार  भी  प्राकृतिक  उपचार  का ही  विशिष्ट  अंग  है --रोगी कुंजल  , जलनेति व  सूत्रनेती  का  अभ्यास  कर  शरीर को  शुद्ध  करे। 
  • दर्द  और सूजन  काम होने  तथा  जोड़  खुलने  पर  योगासनों  का  अभ्यास  करना  शुरू  कर दे --सूर्य  नमस्कार ,  कटी  चक्रासन  , वज्रासन ,  मकरासन , पावनामुक्तासन  का  अभ्यास  करने  से  जोड़ों के रोग  में  विशेष  लाभ  होता  है। 
  • योग  निद्रा  का  रोजाना  ३०  मिनट  का  अभ्यास  करके  शरीर को  शिथिल  करने से  भी  विशेष  आराम  मिलता है। 
  • यदि  दर्द  और  सूजन  घुटनों में  , कलाइयों  में , कुहनी  या  कंधोंमें  हो  तो उस  स्थान पर ३ मिनट  गर्म , २ मिनट ठंडा  सेक  करें। उनकी  मालिस  करें  तथा  उन जोड़ों को  व्यायाम  दें। 
आहार  चिकित्सा
  • भोजन भी  रोग को  ठीक  करने के लिए  जरुरी  है।  उपचार  कितना भी  कारगर  हो  और भोजन  अनुकूल  न हो  तो रोगी  स्वस्थ्य  लाभ  प्राप्त  नहीं  कर पाता  है।  इस रोग में  भोजन  ऐसा  होना  चाहिए  जिसमें  नियमित  विटामिन 'ए ' तथा  विटामिन 'डी '  की मात्रा  अधिक  हो  लेकिन  टमाटर  तथा  पालक  का साग  या  रास  न हो क्योंकि   इनमें एक्जोलिक एसिड  होता  है। 
  • कच्ची  सब्जिओं  के रास  विशेष  कर  गाजर , खीरा , पेठा , लौकी , अदरक  तथा फलों  के रस , संतरा, मौसमी , सेब , अनार , अंगूर  आदि  लेने से जोड़ों के दर्द , सूजन  तथा  अकड़न  थोड़े ही  दिनों में कम की  जा  सकती है। 
  • इस रोगमें  लहसुन  तथा  अदरक  का  प्रयोग खुल कर  होना चाहिए।  लहसुन  के एक चम्मच  रस  में आधा  चम्मच  शहद  मिला कर  दिन में  दो बार  लेने से  वायु  का  प्रकोप कम   होता है। सब्जी में भी  इन्हे  डालें। 
  • योग द्वारा  चिकित्सा  करने से अक्सर  रोगों में  उभार  आ जाता  है  क्योंकि  रोग को  शरीर से बाहर  निकलना  होता  है , दबाना  नहीं।  घबराने  की  जरुरत  नहीं।  उपचार को  कम कर दे या  दो -तीन  दिनों के लिए  बंद  कर दें।  भोजन  को  पुरे परहेज से चलाते  रहें।  

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