बुधवार, 23 दिसंबर 2015

स्वस्थशरीर | औषधिय गुण | घरेलु चिकित्सा | अखरोट


        अखरोट  पतझड़  करने वाले  बहुत सुन्दर  और  सुगन्धित  बृक्ष  है , इसकी दो  जातियां  पाई  जाती है।  जंगली अखरोट   की पौधे १००  से  २००  फीट  तक  ऊँचे,  अपने  आप  उगने  वाले  तथा  फल  का  छिलका  मोटा  होता है।  कृषिजन्य  ४०  से  ९०  फीट  तक  ऊँचा  होता  है  और  इसके  फलों का  छिलका  पतला  होता  है।  इसे  कागजी  अखरोट  कहते  हैं।  इसके  बन्दूकों  के  कुन्दे  बनाये  जाते  हैं।

बाह्यस्वरूप :
               अखरोट की नई शाखाओं का पृष्ठ मखमली , कांड्त्वक धूसर तथा उसमें अनुलम्ब दिशा में दरारें होती हैं। पत्तियां पक्षवत सघन ,मूल रोमश , पत्रक संख्या में ५ से १३ , ३ से ८ इंच लम्बे ,२ से ४  इंच  चौड़े  अंडाकार ,  आयताकार  और  सरल  धार वाले  पुष्प  एकलिंगी  हरिताभ , फल  गोलाकार  हरित वर्णी  के जगह  दो पीले बिन्दुओं  से युक्त  फल  त्वचा  चर्मित  एबं  सुगन्धित  गुठली  १  से डेढ़ इंच लम्बी द्विकोस्थिय रुपरेखा में मस्तिष्क जैसी पृष्ठ ताल पर दो खण्डों में विभक्त तथा गिरी में काफी तेल पाया जाता है। वसंत में पुष्प तथा शरद ऋतु में फल आते हैं।

रासायनिक  पदार्थों की  अवस्थिति :

  अखरोट में ४० से  ४५  प्रतिशत  तक  एक स्थिर  तेल  पाया  जाता है।  इसके  अतिरिक्त  इसमें  जुग्लैडिक  एसिड  तथा  रेजिन  आदि  भी  पाए  जाते  हैं।  इसके  फलों में  एक्जोलिक  एसिड  पाया जाता है।


गुण  और धर्म 

     यह वात  नाशक , कफ  पित्त  वर्धक , दीपन , स्नेहन , अनुलोमन , कफ निःसारक , बल्य , बृषय  एबं  बृंहण  होता  है।  इसका  लेप  वर्ण्य , कुष्ठन , शोथहर  एबं  वेदना  स्थापन  होता है।  गिरी  और  इससे  प्राप्त  तेल  को छोड़कर  अखरोट  के  सब  अंग  संग्राही  होते हैं।


अखरोट की अौषधीय  गुण :
 
मस्तिष्क  दुर्वलता :
     
   अखरोट की  गिरी  को  २५ से ५० ग्राम तक की  मात्रा में नित्य खाने से मस्तिष्क  शीघ्र  ही  सबल हो जाता है।
अर्दित में 

  अर्दित में अखरोट  के तेल की मालिस  कर  वात  हर  औशधिओं  के  क्वाथ से  बफारा  देनेसे  लभ होता है।


अपस्मार 

अखरोट गिरी को  निर्गुण्डी के रस में पीस अंजन  और  नस्य  देने से लाभ होता है।

नेत्र ज्योति 

  दो अखरोट और  तीन  हरड़  की गुठली को  जलाकर  उनकी भष्म  के साथ  ४  नग  काली मिर्च को पीस कर अंजन  करने से  नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।


कंठमाला 

इसके पत्तों का क्वाथ ४० से ६०  ग्राम पीने से व  उसी  क्वाथ  से  गांठों  को  धोने  से  कंठमाला मिटती  है।


दाँत 

इसकी  छाल  को  मुँह  में  रखकर  चबाने  से दांत  स्वच्छ  होते  हैं।  अखरोट   छिलकों  की  भस्म  से  मंजन  करने से  दांत  मजबूत  होते  है।


स्तन्यजनन 

स्तन  में  दूध  की  वृद्धि  के  लिए  गेहूँ  की  सूजी  १  ग्राम  अखरोट  के  पत्ते  १०  ग्राम  पीसकर  दोनों  को  मिलाकर  गाय   के घी  में  पूरी  बनाकर  सात  दिन  तक  खाने  से  स्तन्य  (स्त्री  दुग्ध  )  की  वृद्धि  होती  है।


कास 

अखरोट गिरी  को  भूनकर  चबाने  से  लाभ  होता  है।  छिलके  सहित  अखरोट  की  भस्म  कर  एक ग्राम  भस्म  को  ५  ग्राम  मधु  के  साथ  चटाने  से  लाभ  होता  है।


हैजा   

हैजे  में  जब  शरीर  में  बाइटे  चलने  लगते  है  या  सर्दी  में  शरीर  ऐंठता  हो  तो  अखरोट  के  तेल  की  मालिश  करनी  चाहिए।


विरेचन  


अखरोट  के  तेल  को  २०  से  ४०  ग्राम  की  मात्र  में  २५०  ग्राम  दूध  के  साथ प्रातः  काल  देने  से  कोष्ठ  मुलायम  होकर  साधारणतः  अच्छा दस्त  हो  जाता है।


आंत्र कृमि 

अखरोट  की  छाल का  क्वाथ  ६०  से  ८०  ग्राम  पिलाने  से  आँतों  के  कीड़े  मर  जाते  हैं।  इसके  पत्तों  का  क्वाथ  ४०  से  ६०  ग्राम  की  मात्र  में  पिलाने  से  भी  आँतों  के  कीड़े  मर  जाते  हैं।


अर्श 

वात जन्य  अर्श  में  इसके  तेल  का  पिचु   को  गुदा  में  लगाने  से  सूजन  काम  होकर  पीड़ा  मिट  जाती  है।  इसके  छिलके  की  भस्म  २  से  ३  ग्राम  को  किसी  विष्टम्भी  औषधि  के  साथ  सुबह  दोपहर  शाम  खिलाने  से  रक्त  अर्शजन्य  रुधिर  बंद  हो  जाता  है।


आर्तव  जनन 

मासिक  धर्म  की  रुकावट  में  फल  के  छिलके  का  कव्ठ  ४०  से  ६०  ग्राम  की  मात्रा  में  लेकर  २  चम्मच  शहद       ३ -४  बार  पिलाने  से  लाभ  होता  है।  फल  के  १०  से  २०  ग्राम  छिलकों  को  १  किलो  पानी  में  पकाकर  अष्टमांश  शेष  काढ़ा  सुबह  शाम  पिलाने  से  भी  दस्त  साफ  हो  जाता  है।


प्रमेह 

अखरोट  गिरी  ५०  ग्राम ,  छुआरे  ४०  ग्राम  और  विनौले  की  मींगी  १०  ग्राम  एक  साथ  कूटकर  थोड़े  से  घी  में  भूनकर  बराबर  की  मिश्री  मिलकर  रख्खें ,  इसमें  से  २५  ग्राम  नित्य  प्रातः  सेवन  करने  से  प्रमेह  में  लाभ  होता  है।   इसके  साथ  दूध  न पियें।


वीर्यस्राव 

फलों  के  छिलके  की  भस्म  बना लें  और  इसमें  बराबर  की  मात्रा  में  खांड  मिलकर  १०  ग्राम  तक  की  मात्रा  में  जल  के  साथ  १०  दिन  प्रातः  सायं  तक  सेवन  करने  से  धातुस्राव  या वीर्यस्राव  बंद  होता है।


वात  रोग 

अखरोट  की  १०  से  २०  ग्राम  ताज़ी  गिरी  को  पीसकर  वेदना  स्थान  पर  लेप  करें ,  ईंट  को  गर्म  कर  उस  पर  जल  छिड़क  कर  कपड़ा  लपट  कर  उस  स्थान  पर  सेंक  देने  से  शीघ्र  पीड़ा  मिट  जाती  है।   गठिए  पर  इसकी  गिरी  को  नियमपूर्वक  सेवन  करने  से  रक्त  शुद्धहि  होकर  लाभ  होता  है।


शोथ

अखरोट का  १०  से  ४०  ग्राम  तेल ,  २५०  ग्राम  गौमूत्र  में  मिलकर  पिलाने  से  सर्वांग  शोथ  में  लाभ  होता  है।   वाट  जन्य  शोथ  में  इसकी  १०  से  २०  ग्राम  गिरी  को  कांजी  में  पीसकर  लेप  करने  से  लाभ  होता  है।

वृद्ध पुरुषों  के  बलवर्धनार्थ 

१०  ग्राम  गिरी  को  १०  ग्राम  मुनक्का  के  साथ  नित्य  प्रातः  खिलाना  चाहिए।


दाद 

प्रातः  काल  बिना  मंजन  कुल्ला  किये  अखरोट  की  ५  से  १०  ग्राम  गिरी  को  मुंह  में  चबाकर  लेप  करने  से  कुछ  ही  दिनों  में  दाद  मिट  जाती  है।


नासूर 

इसकी  १०  ग्राम  गिरी  को  महीन  पीसकर  मूम  या  मीठे  तेल  के  साथ  गलाकर  लेप  करें।


व्रण 

इसकी  छल  के  क्वाथ  से  व्रणों  को  धोने  से  लाभ  होता  है।


नारू 

अखरोट  की  खेल  को  जल  के  साथ  महीन  पीसकर  आग  पर  गर्म  कर  नहरुबा  की  सूजन  पर  लेप  करने  से  तथा  उस  पर  पट्टी  बांध  कर  खूब  सेंक  देने  से  नारू  १० -१५  दिन  में  गाल  के  बाह  निकलत अ है।   अखरोट  की  छल  को  पानी  में  पीसकर  गर्म  कर  नारू के  घाव  पर  लगाएं।


अहिफेन  विष 

अखरोट  की  गिरी  २०  से  ३०  ग्राम  तक  खाने  से  अफीम  का  विष  और  भीलवे  के  उपद्रव  शांत  हो  जाते  हैं।