उपवास का अर्थ है खली पेट रहना। पाचन तंत्र की विराम के लिए उपवास जरुरी है। उपवास बिभिन्न प्रकार की होती है। जलउपवास, आंशिक उपवास , फलोपवास , रसोपवास आदि उपवास होती है। उपवास से बिभिन्न रोगोंको जड़से निकालकर बहार किया जा सकता है। पुराने ज़माने मे मुनि ऋषिओं का उम्र तथा स्वस्थ्य बहत अच्छा था। वे फल का आहार करते थे तथा उपवास रहने का आदत थी। ूोवास रहने का उपकार निम्न पंक्तिओं में दिया गया है।
शरीर मे भोजन को पाचन सतत चलता रहता है। उपवास कालमे पाचन एवं उपचय की शक्ति न्यून हो जाती है। उसकी साडी शक्ति निर्माण एवं बिषाक्त पदार्थों को निकलने में लग जाती हे।
शरीर के रोगों को दूर करने वाली शक्ति स्वयं चलित पद्धति , बनाने की पद्धति तथा जाँच करने की शक्ति सृष्टि होती है। स्वस्थ्य को गतिशील करती है।
उपवास कालमे शरीर से संचित खाद्य पदार्थों प्रोटीन, चर्वी , कार्बोहीड्रेट आदि स्वयं चलित पद्धति के माध्यम से शरीर को पोषण देने में जुड़ जाती हे। इस समय कमजोरी मानसिक तौर पर आती हे। उपवास कालमे यथा संभव विश्राम करें।
उपवास की समय में कैल्शियम तथा आयरन का मात्रा अधिक होनेसे रक्त कणिका और हेमोग्लोविन की संख्या बढ़ जाती हे। कोलेस्ट्रोरल , एसिड , यूरिआ आदि धीरे धीरे सामान्य होने लगती हे।
उपवास की समय में इन्सुलिन आदि आरोग्य प्रतिरोधक प्रक्रिया दूर हो जाती हे।
उपवास काल में अस्थाई रूप से पेशाव में पास सेल की बृद्धि होती हे जो धीरे धीरे संतुलन होने पर स्वतः काम हो जाती हे।
उपवास में कोशकीय मेटाबोलिज्म सही ढंग से नियंत्रित, नियमित एवं नियोजित हो जाती हे।
इस समय अपूर्ण एवं असंतुलित के अणु जो बसा के ऑक्सिडेसन के दौरान बनते हे यानि पेरोक्साइड फेट ,ऑक्सीजन रेडिकल , सुपर ऑक्साइड , हीड्रोक्लोरिक एसिड आदि कोशिकाओं के अंदर बहार से आक्रमण करके उनकी झिल्ली , एंजाइम , प्रोटीन आदि को नस्ट कर बुढाप्पा तथा अन्य बीमारी पैदा करते हे। इन सबसे निपटने के लिए रसाहार तथा फलाहार की जरुरी हे।
लम्बी उम्र प्राप्त करने वाले प्रनिओं के अंदर कुछ खास प्रकार के शक्तिशाली एंजाइम सुपर ऑक्साइड तथा अनेक प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट का निर्माण होता हे। ये एंटीऑक्सीडेंट संधिवात , मधमेह , गठीआ , ह्रदय रोग , कैंसर आदि रोगों का सुरक्षा प्रदान करता हे।
लम्बी उम्र का प्रमुख कारक बी.एम.आर का काम होना जरुरी हे। उपवास एवं रसाहार कल में बी.एम.आर काम होने लगता हे।
उपवास के दौरान कैंसरकारी प्रोनीओप्लास्टिक कोशिकाएं नष्ट एवं नियंत्रित होने लगती हे। साथ ही कैंसर कोशिकाओं की बिभाजन दर कम एवं नियंत्रित होने लगता हे।
उपवास की समय रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित होने से क्रॉसलिंकिंग की प्रक्रिया कम हो जाती हे। रक्त में ग्लूकोस का स्तर अधिक होनेसे ग्लूकोस की उपस्थिति में कोशिका के अंदर तथा दो कोशिका के बीच प्रोटीन के अनु चिपक कर जाली सदृश संरचना बनाते है। इसी क्रॉसलिंकिंग के कारण फेफड़े तथा दिल की क्ष्य्मता कम हो जाती है। उपवास इसी क्रॉसलिंकिंग को नियंत्रित करती है और समस्त अंगों की क्ष्य्मता बढाती है।
लम्बी उम्र प्राप्त करने वाले प्रनिओं के अंदर कुछ खास प्रकार के शक्तिशाली एंजाइम सुपर ऑक्साइड तथा अनेक प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट का निर्माण होता हे। ये एंटीऑक्सीडेंट संधिवात , मधमेह , गठीआ , ह्रदय रोग , कैंसर आदि रोगों का सुरक्षा प्रदान करता हे।
लम्बी उम्र का प्रमुख कारक बी.एम.आर का काम होना जरुरी हे। उपवास एवं रसाहार कल में बी.एम.आर काम होने लगता हे।
उपवास के दौरान कैंसरकारी प्रोनीओप्लास्टिक कोशिकाएं नष्ट एवं नियंत्रित होने लगती हे। साथ ही कैंसर कोशिकाओं की बिभाजन दर कम एवं नियंत्रित होने लगता हे।
उपवास की समय रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित होने से क्रॉसलिंकिंग की प्रक्रिया कम हो जाती हे। रक्त में ग्लूकोस का स्तर अधिक होनेसे ग्लूकोस की उपस्थिति में कोशिका के अंदर तथा दो कोशिका के बीच प्रोटीन के अनु चिपक कर जाली सदृश संरचना बनाते है। इसी क्रॉसलिंकिंग के कारण फेफड़े तथा दिल की क्ष्य्मता कम हो जाती है। उपवास इसी क्रॉसलिंकिंग को नियंत्रित करती है और समस्त अंगों की क्ष्य्मता बढाती है।