एसिडिटी रोग को एसिड डिस्पेप्सिआ , एसिड गैस्ट्राइटिस और हाइपर क्लोरोहाइड्रिया के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग का इतिहास बहत पुराना है। लगातार बासी व तामसिक भोजन खाने से शरीर मे बहत ज्यादा अम्ल तथा पित्त का निर्माण होता है। इसी को अम्ल पित्त कहते है। बदलती ऋतुओं से इस रोग का सीधा सम्बन्ध है। शरद ऋतु और वर्षा ऋतु में यह रोग ज्यादा पैर पसारता है। इस रोग में रोगी के आमाशय में अम्ल और पित्त का निर्माण बहुत ज्यादा होने लगता है। तब गैस्ट्रिकम्यूकोसा में उत्तेजना पैदा होती है , जिससे हाइपर एसिडिटी का शरीर में निर्माण होता है। कई बार रोग की अवस्था में उचित उपचार न कराने की वजह से रोगी गैस्ट्रिक और ड्यूडिनल अलसर का शिकार बन जाया करता है। रोग की गंभीर अवस्था में रोगी को कैंसर भी हो सकता है।
लक्षण
- अम्लपित्त रोगी को थकान रहने लगती है।
- रोगी को पेट में भारीपन का एहसास होता रहता है।
- रोगी को उबकाई आती हैं। उसकी उबकाई में पीला, नीला, हरा, या लाल रंग का पित्त निकलता है।
- रोगी को भोजन से अरुचि सी हो जाया करती है। उसे डकार आती रहती है।
- रोगी के पेट, छाती और गले में जलन रहने लगती है।
- रोगी के मुहँ का स्वाद कसैला व कड़वा रहने लगता है।
- रोगी के मुहँ में अम्लपित्त की वजह से छाले हो जाया करते हैं।
- रोगी के दांत भी खट्टे रहने लगते हैं।
- भूखा पेट रहने पर रोगी को जलन का एहसास होता है और भोजन कर लेने के पश्चात जलन में कुछ वक्त के लिए आराम सा पड़ जाया करता है।
- रोगी को सही नींद नहीं आती है, जिससे वह हर वक्त टेंशन में रहने लगता है।
- रोगी की जीभ पर मैला पदार्थ जम जाया करता है।
- रोगी को गैस की प्रॉब्लम रहने लगती है। जिससे उसे अफारा, पेट दर्द और पेट फूलने की समस्या का सामना करना पड़ता है।
- रोगी के हाथ पैरों, आँखों व तलवों में जलन रहने लगती है।
- रोगी को मलमूत्र त्यागते वक्त भी जलन की अनुभूति होती है।
- इस रोग के रोगी को बार-बार थूकने की आदत बन जाया करती है।
- रोगी की नाक से गर्म-गर्म सांसें निकलती हैं और उनका गुदा मार्ग से भी तीखी खट्टी और दुर्गन्धयुक्त गैसों का विसर्जन होता रहता है।
कारण
- गलत खानपान से भी यह रोग शरीर में पनपता है।
- शराब, धूम्रपान व तम्बाकू के ज्यादा सेवन से यह रोग होता है।
- तले, भुने व ज्यादा चटपटे खाद्य पदार्थों के सेवन से भी यह रोग शरीर में अपनी पैठ बनाने में सफल होता है।
- ब्रेड, जैम, जैली, फ़ास्ट फ़ूड, कोल्ड ड्रिंक्स आदि के सेवन से भी यह रोग होता है।
- चाय ,कॉफी , बिस्कुट व ज्यादा चीनी के प्रयोग से भी यह रोग उत्पन्न होता है।
- चिंता व मानसिक तनाव भी इस रोग को शरीर में पैदा करते हैं।
- खट्टे खाद्य पदार्थों , सिरका , खट्टी दही ,खट्टी छाछ के सेवन से भी शरीर में अम्ल पित्त रोग पैदा होता है।
- ज्यादा मात्रा में बेसन व मैदा से बने खाद्य पदारथों के सेवन से भी अम्ल पित्त हो जाया करता है।
- कम मात्रा में पानी पिने से और ज्यादा उपवास ब्रत रखने से भी व्यक्ति इस रोग का शिकार होता है।
- चॉकलेट , कुल्फी , डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ , क्रीम , आइसक्रीम , टॉफियाँ रोज ज्यादा मात्रा में खाने से भी अम्ल पित्त रोग होता है।
- पालिश किया चावल खाने से भी यह रोग हो जाया करता है।
- बिना चोकर के बारीक़ पिसे आटे की रोटीआं खाने से भी यह रोग सामने आते है।
- आजकल लोग एलोपैथिक दवाओं और एंटीबायोटिक दवाओं का खूब सेवन करते है। इस तरह की दवाओं के ज्यादा सेवन से भोज नलिका और आमाशय पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है , जिससे व्यक्ति की आँतों में सूजन आ जाती है , घाव हो जाता है और शरीर में अम्ल ज्यादा बनने लगता है।
- जल्दी बिना चलाये भोजन करने से भी शरीर में अम्ल पित्त रोग पैदा होते है।
- महिलाओं में गर्भावस्ता के दौरान यह रोग दिखाई देता है।
- अजीर्ण , पुरानी पेचिश , कब्ज , मंदाग्नि , संग्रहणी , आमाशय में सूजन , आंतों में सूजन होने की बजह से भी अम्ल पित्त रोग सत्ता सकता है।
- दांतों के रोग , आंतों के रोग , पायरिया , लिवर की खराबी , तिल्ली की खराबी भी इस रोग को पैदा करती है।
- दूषित पानी पिने से भी यह रोग फैलता है।
- ठन्डे गरम खाद्य पदार्थों का एक-दूसरे के ऊपर सेवन कर लेने से भी अम्लपित्त रोग हो जाता है।
- त्रिफला या आमले के चूर्ण में थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटना चाहिए।
- हरड़ के चूर्ण में थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटना चाहिए।
- अम्लपित्त रोग होनेपर रोगी के शरीर में कई तरह की विकार पैदा हो जाया करते है। इन विकारों से छुटकारा पाने के लिए काली मिर्च , सोंठ और नीम की छाल को मिलकर बारीक़ पीसकर चूर्ण बना ले। इस चूर्ण को सुबह शाम एक चम्मच की मात्रा में ताजे पानी से लेने से फ़ायदा होता है।
- पीपल , सुखा आंवला , छोटी हरड़ , धनिया , कुटकी का समभाग मात्रा में लेकर पीस ले। इसमें इनके बराबर की मात्रा में मुनक्का दाख भी मिला ले। रात्रि के समय लगभग १५ ग्राम के मात्रा में इस मिश्रण को लेकर एक मिटटी के सकौरे में पानी में भरकर उसमें मिला दें। सुबह इस मसलन को छानकर पी लें। २-३ महीनें तक लगातार यह क्रिया करते रहने से अम्लपित्त रोग दूर हो जाता है।
- अगर इस रोग की वजह से पेट में दर्द की अनुभूति होती हो तो पीपल के वृक्ष की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है। काढ़े में गुड और सेंधा नमक डालना न भूलें।
- ताज़ा आंवले के गुदे में बारीक पिसी हुई मिश्री मिलाकर रखनी चाहिए।
- मुनक्का १० ग्राम और सौंफ आदि मात्रा में लेकर दोनों को १०० मिली. पानी में भिगो दें। सुबह मसलकर - छानकर पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।
- दाख, हरड़ बराबर-बराबर लें। इसमें दोनों में बराबर शक्कर मिला लें। सबको पीसकर १-१ ग्राम की गोली बनाकर लेने से अम्लपित्त, हृदय कंठ की प्यास, मंदाग्नि का शमन होता है।
- पकी निबौली के ३-४ दाने खाने से मंदाग्नि में फायदा होता है।
- धनिया, सौंठ, शक्कर और नीम की सींक ६-६ ग्राम की मात्रा में लें। इसका क्वाथ बनाकर सुबह शाम पीने से पित्त की जलन, खट्टी डकारें, अपचन, ज्यादा प्यास मिटती है। पित्त स्वर में भी इसका सेवन लाभ पहुँचाता है।
- त्रिफला चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में दिन में २-३ बार पानी के साथ फांकने से एसिडिटी में लाभ होता है।
घरेलु चिकित्सा
- ककड़ी या खीरे को बिना नमक के साथ खाने से अम्लपित्त रोगी ठीक होता है। ककड़ी या खीरा खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए।
- अगर वायु विकार की समस्या हो और खट्टी डकारें आ रही हों, तो २ आलू बालू में भून लें। इसमें जीरा, काली मिर्च, थोड़ा सा सेंधा नमक मिला लें। अब इसमें थोड़ा सा नींबू का रस मिलाकर इसका सेवन करें।
- गाय के दूध में गुड मिलाकर पीने से खूब खुलकर पेशाब आयेगा, जिससे अम्लता मिटने के साथ-साथ गर्मी व जलन भी मिट जायेगी।
- आधा चम्मच नींबू के रस की बूंदें मिला लें। इसे दिन में ३- ४ बार चाटने से अम्लपित्त में फायदा होता है।
- गुड के साथ जीरे का चूर्ण लेना चाहिए।
- धनिया और अदरक को बराबर की मात्रा में लेकर पानी के साथ सेवन करने से रोग में फायदा होता है।
- एसिडिटी की समस्या हो तो नारियल का पानी पीना चाहिए।
- काली मिर्च की चटनी के साथ काले चनों को खाना चाहिए।
- प्याज़ के रस में नींबू का रस मिला लें। इसके सेवन से पेशाब की जलन मिटती है।
- एक चम्मच जामुन के रस में थोड़ा सा गुड मिलाकर उसका सेवन करना चााहिए।
- आंवले के चूर्ण को छाछ या दही के साथ सेवन करना चाहिए।
आहार
- बासी भोजन नहीं करना चाहिए।
- सुबह शाम टहलने की आदत अवश्य डालें।
- रोगी को गेहूँ व जौ के चोकर युक्त मोटे आटे की रोटियां खानी चाहिए। भुना अनाज व अंकुरित अनाज का सेवन करना चाहिए।
- सब्जियों में रोगी को तोरई, टिण्डा, पालक, मेथी, परवल, मूली, पेठा, नैनवा, पत्ता गोभी, करेला, कद्दू, हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
- फलों में रोगी को मीठा बेदाना अनार, आंवला, अमरूद, पपीता, केला, मीठा, आम, अंजीर, सेव, लीची व खिरणीफल आदि का सेवन करना चाहिए।
- रोगी को बेल का जूस, अंगूर का जूस, लौकी का जूस, गाजर का जूस का सेवन करना चाहिए।
- रोगी को आंवले का मुरब्बा व बहेड़े का मुरब्बा खाना चाहिए।
- अंकुरित मूंग, चना, मक्का व गेहूँ का सेवन रोगी को करना चाहिए।
- गर्मियों में रोगी को भुने हुए जौ का सेवन करना चाहिए।
- पानी व तरल पदार्थ बार-बार पीना चाहिए।
- हमेशा हल्का व सुपाच्य भोजन करना चाहिए।
- मिश्री या खांड मिलाकर जौ व चने के सत्तू का सेवन करना चाहिए।
- भोजन को शांत चित्त होकर करें व समय-समय पर भोजन को चबा-चबा कर ग्रहण करने की आदत डालें।
- हफ्ते में एक बार उपवास अवश्य रखें।
- मौसमी फलों का सेवन करें। सलाद को अपने भोजन में अवश्य शामिल करें।
- दूध को हमेशा उबालकर व ठंडा करके पीने की आदत डालें।
- गर्मियों में बादाम, पिस्ता, सौंफ, काली मिर्च की ठंडाई फ़ायदा पहुँचाती है।
- समय-समय पर उठना, समय पर सोना व समय पर भोजन करना अम्लपित्त रोग को पनपने नहीं देता है।
- कफ पित्त नाशक खाद्य पदार्थ व उबला हुआ पानी इस रोग में फायदा पहुँचाते हैं।
परहेज़
- आलू, टमाटर, फूलगोभी, बैगन आदि सब्जियों का सेवन न करें।
- मैदा और बेसन बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
- गरिष्ठ व टेल भुने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
- कभी भी मन में क्रोध, चिंता, द्वेष, ईर्ष्या आदि भावों को लाकर भोजन न करें। इस अवस्था में भोजन का पाचन सही प्रकार से नहीं हो पाता है। जिससे पेट में भोजन अम्लता पैदा करता है।
- चाट, पकौड़ी आदि चटपटे व्यंजनों को न खाएं।
- अनार, चटनी, डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का सेवन न करें, गर्म भोजन न करें, खट्टी दही व छाछ का सेवन न करें, चाय कॉफ़ी से दूर रहें, सोयाबीन, उड़द, अरहर, कुलथी, काबुली चना, राजमा, तेल आदि का सेवन न करें।
- रात्रि में भोजन देरी से न करें।
- कब्ज से पीछा छुड़ाने के लिए कभी भी ज्यादा दस्तावर चूर्ण का प्रयोग न करें।
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